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हिन्दी में अशुद्धियाँ

रमेशचन्द्र मेहरोत्रा

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :350
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13482
आईएसबीएन :9788171196661

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प्रमुखतः उपचारात्मक मूल्य-वाली यह पुस्तक हिंदी को अशुद्धियों से दूर रखना चाहने वालों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है

मानक हिंदी इतने बड़े क्षेत्र में और इतनी अधिक जनसँख्या द्वारा व्यवहृत की जा रही है कि उस का एकमेव राष्ट्रीय स्वरुप निर्मित होना और उसका स्थिर रह पाना असंभव है। कारण डॉ हैं-एक तो उस के प्रयोक्ताओं पर उन की मातृबोलियों का व्याघात, तथा दूसरे उनको दी जाने वाली समुचित शिक्षा का आभाव और अशुद्धियों (प्रयोगों में अंतर होने) की सामाजिक पृष्ठभूमि। प्रस्तुत पुस्तक में समूचे हिंदी क्षेत्र से नमूनार्थ संकलित सामग्री को विश्लेषित करके हजारों उदाहरणों के साथ यह स्पष्ट किया गया है कि हिंदी की बीस बोलियों के मत्रिभाशी मानक हिंदी लिखते समय वर्तनी, व्याकरण और अर्थ से सम्बंधित किस-किस प्रकार की कुल 44 त्रुटियाँ करते हैं, जिन में 111 उपत्रुतियाँ अंतर्भुक्त हैं। इन उप्त्रुतिओन को सरलतम विधि से केवल आगम (कुल 7), आदेश (कुल 95), और लोप (कुल 9) तीन आधारों को समझाया गया है। प्रमुखतः उपचारात्मक मूल्य-वाली यह पुस्तक हिंदी को अशुद्धियों से दूर रखना चाहने वालों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है।

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